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Showing posts from March, 2020

हमारी स्वीकृति और अस्वीकृति

सुख और दुख में, कोई ज्यादा भेद नहीं......! जिसे मन स्वीकारे , वह सुख और जिसे.......! अस्वीकारे वह दुख .......!! सारा खेल हमारी, स्वीकृति और अस्वीकृति ......! का ही तो है..........!!!

सम्मान दो...सम्मान लो.

रूठो बेशक अपनो से..... लेकिन मनाने से मान जाओ.... अपने तो आखिर अपने है... यह बात तुम मान जाओ.. होती है.. गलती... गलती से गलती न कि हो जिसने कभी.. सामने वह इंसान लाओ.. अक्सर टूटने पर पता चलती है अहमियत.. अनमोल दिल के रिश्ते को पहचान जाओ.. बजती है ताली दोनों हाथों से.. यह उसूल है दुनिया का... सम्मान दो...सम्मान लो..

माफ कर दो या माफी माँग लो!

किसी महापुरुष ने कहा कि "माफ करना तो सरल है लेकिन माफी माँगना सरल नहीं है।" हमें माफ करना आता है ये अच्छी बात है मगर हमें माफी माँगना भी आना चाहिए ये उससे भी अच्छी बात है। पारिवारिक जीवन में , मैत्री जीवन में या सामाजिक जीवन में संबंधों को मजबूत और मधुर बनाने हेतु किसी भी व्यक्ति के अंदर इन दोनों गुणों में से एक गुण की प्रमुखता अवश्य होनी ही चाहिए। महाभारत की नींव ही इस सूत्र के आधार पर पड़ी कि किसी के द्वारा माफ नहीं किया गया तो किसी के द्वारा माफी नहीं मांगी गई। हमारा जीवन एक नयें महाभारत से बचकर आनंद में व्यतीत हो इसके लिए आज बस एक ही सूत्र काफी है और वो है माफ  - कर दो या  माफी  माँग लो!

उम्मीद किया बिना उसका अच्छा करो

किसी से उम्मीद किया बिना उसका अच्छा करो, क्योंकि किसी ने कहा है, "कि जो लोग फूल बांटते हैं उनके हाथ मे अक्सर खुशबू रह जाती है हम भी लगाव रखते हैं पर बोलते नहीं, क्योंकि हम रिश्ते निभाते हैं तौलते नहीं...!

उड़ने दो मिट्टी को आखिर कहाँ तक उड़ेगी

उड़ने दो मिट्टी को आखिर कहाँ तक उड़ेगी, हवाओं ने जब साथ छोड़ा तो, आखिर जमीन पर ही गिरेगी !! माना कि औरों की मुकाबले, कुछ ज्यादा पाया नहीं मैंने.... लेकिन..खुश हूँ कि....खुद गिरता संभलता रहा... पर किसी को गिराया नही मैंने!

सभी को “साथ” रखिये . . .

सभी को  “साथ”  रखिये . . . लेकिन - साथ में कभी   “स्वार्थ”  मत रखिये..... गलत सोच  और  गलत अंदाजा  इंसान को हर रिश्ते से गुमराह कर देता है हवाएं अगर  मौसम  का रुख बदल सकती हैं तो  दुआएं  भी मुसीबत के पल बदल सकती है उंचाई पर वो ही पहुँचते है जो  "प्रतिशोध"  के बजाय   "परिवर्तन"  की सोच रखते है।

दूसरों के दर्द का अहसास होना चाहिए

दूसरों के दर्द का अहसास होना चाहिए......... अपनी मर्यादा का भी आभास होना चाहिए........ प्रेम की सीमाएं हैं आकाश तक बिखरी हुई........ शर्त है इतनी तुम्हे विश्वास होना चाहिए........ क्रोध कुंठा सनक जीवन को बना देते नरक........ जिंदगी के वास्ते परिहास होना चाहिए........ लक्ष्य को पाना है तो याद रखें एक बात........ हौसला हरदम हमारे पास होना चाहिए........ सारे पतझड़ झेल सकते हैं... बड़े आराम से........ चित्त के उपवन में भी मधुमास होना चाहिए......

आंखों में स्नेह

चाहे कितने भी भारी भारी शब्दों से सजावट कर के सुविचार भेज दे यदि ..... आंखों में स्नेह, होठों पर मुस्कान , और ह्रदय में सरलता और करुणा नहीं तो सब कुछ व्यर्थ है

ज़िंदगी तो सभी के लिए एक रंगीन किताब है

ज़िंदगी तो सभी के लिए एक रंगीन किताब है ..! फर्क बस इतना है कि, कोई हर पन्ने को दिल से पढ़ रहा है; और कोई दिल रखने के लिए पन्ने पलट रहा है। हर पल में प्यार है, हर लम्हे में ख़ुशी है ..! खो दो तो यादें हैं, जी लो तो ज़िंदगी है

जिन्हें मंज़िल पर जाना हो वो शिकायत नहीं करते,

￰जिन्हें मंज़िल पर जाना हो वो शिकायत नहीं करते, और जो शिकवों में उलझते हैं वो कभी मंज़िल पर नहीं पंहुचते जो उड़ते हैं अहम के आसमानों में जमीं पर आने में, वक़्त नहीं लगता हर तरह का वक़्त आता है ज़िंदगी में वक़्त के गुज़रने में, वक़्त नहीं लगता।  

रिश्तों की "एहमियत" को समझें

"पैसा"   कमाल की चीज है  जिसके पास नहीं. . उसकी इज्जत नहीं   और जिसके पास है "उसे.." किसी की इज्जत नहीं! रिश्तों की "एहमियत" को समझें इन्हें "जताया" नहीं, "निभाया" जाता है..!

मन के विचार

"मुस्कुराकर गम का जहर जिसको पीना आ गया यह हकीकत है,जहाँ मे उसको जीना आ गया मौत ने मुझसे कहा में तुमको लेने आ रही हु जिंदगी बोली डरो मत ,में  अभी मुस्कुरा रही हु देह ने मुझसे कहा में मिटटी बनने जा रही हु आत्मा बोली डरो मत में अमन बनके आ रही हु"   

एक नयी सोच

पिता :- कन्यादान नहीं करूंगा जाओ ,  मैं नहीं मानता इसे , क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,जिसको दान में दे दूँ ; मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में , पति के साथ मिलकर निभाना तुम , मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा , आज से तुम्हारे दो घर ,जब जी चाहे आना तुम , जहाँ जा रही हो ,खूब प्यार बरसाना तुम , सब को अपना बनाना तुम ,पर कभी भी  न मर मर के जीना ,न जी जी के मरना तुम , तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम ,  ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम , न तुम बेचारी , न अबला ,  खुद को असहाय कभी न समझना तुम , मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें ,मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ , उसे बखूबी निभाना तुम ................. एक नयी सोच एक नयी पहल सभी बेटियों के लिए   एक पिता द्वारा  .