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युग, प्रलय और दिव्य वर्ष

हम हमेशा से ही सुनते आ रहे हैं की यह कलयुग चल रहा हैं, और सतयुग में, द्वापर में बहुत अच्छा होता था आदि आदि , आइये आज जानते हैं चारो युगो के बारे में 


युग चार प्रकार के होते हैं जो सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग।

 
1. सतयुग 
    • सनातन की पूर्ण स्तिथि होती हैं। 
    • चारो दिशा में धर्म ही धर्म होता हैं.
    • पिता के सामने पुत्र नहीं मरते।
    • निंदा नहीं होती।
    • भगवान श्री नारायण शुक्ल वर्ण के होते हैं.
    • एक ही वेद की मान्यता होती हैं.
    • जब आत्मतत्व की प्राप्ति कराने वाला धर्म हो तब सतयुग ही समझना चाहिए। 
2. त्रेतायुग
    • यज्ञ की प्रवत्ति होती हैं। 
    • धर्म का एक पैर नष्ट हो जाता हैं, यदि अब तीन पाद ही होते हैं। 
    • भगवान श्री नारायण रक्त वर्ण के होते हैं. 
    • लोग अपने धर्म से नहीं डिगते।
3 . द्वापरयुग 
    • वेद के चार भाग हो जाते हैं.
    • धर्म के केवल दो पाद ही रहते हैं.
    • भगवान श्री नारायण पित वर्ण के होते हैं. 
    • अधर्म के कारण प्रजा क्षीण होने लगती हैं. 
4. कलयुग
      • भगवान श्री नारायण श्याम वर्ण के होते हैं. 
      • धर्म का केवल एक पाद रहता है. 

    ब्रह्मा जी के एक दिन का गणित (1000  चतुर्युगी)
     
    सतयुग (4800) 
            4000 दिव्य वर्षो का सतयुग 
              400 दिव्य वर्षो की संध्या 
              400 दिव्य वर्षो की संध्याअंश 
     
    त्रेतायुग (3600) 
            3000 दिव्य वर्षो का त्रेतायुग 
              300 दिव्य वर्षो की संध्या 
              300 दिव्य वर्षो की संध्याअंश 
     
    द्वापरयुग (2400) 
            2000 दिव्य वर्षो का द्वापरयुग  
              200 दिव्य वर्षो की संध्या 
              200 दिव्य वर्षो की संध्याअंश 

    कलयुग (1200) 
            1000 दिव्य वर्षो का कलयुग 
              100 दिव्य वर्षो की संध्या 
              100 दिव्य वर्षो की संध्याअंश 

            इस प्रकार कुल 12000 दिव्य वर्षो की एक चतुर्युगी होती हैं  
            कलयुग समाप्ति के बाद फिर से सतयुग आता हैं। 

            इस प्रकार 1000  चतुर्युगी के बराबर ब्रह्मा जी के एक दिन होता हैं 
     
            मनुष्यो  का एक वर्ष, देवताओ के एक दिन-रात के बराबर होता है, इस प्रकार यदि हम अपने वर्षो के अनुसार कलयुग के कुल वर्ष निकाले तो लगभग 4,38,000 वर्षो  (1200 * 365 )  का तो मात्र कलयुग ही होगा, आगे आप गणना कर सकते हैं, 

    प्रलय 

             इस प्रकार यह सारा जगत ब्रह्मा जी के एक दिन के बराबर रहता हैं, दिन समाप्त होने पर सब नष्ट हो जाता हैं, जिसे ही प्रलय कहते हैं.

    सतयुग प्रारम्भ 
            
            जब सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति एक ही राशि में एक ही पुष्य नक्षत्र पर एकत्र होंगे उस समय सतयुग (सत्ययुग) की प्रारम्भ होगा।



    तो दोस्तों आज हमने संक्षित महाभारत के अनुसार युग, चतुर्युगी, ब्रह्मा जी के एक दिन, प्रलय और सतयुग प्रारम्भ के बारे में जाना, अगले लेख में आपको काल के स्वरुप के बारे में बताऊंगा 

    धन्यवाद 





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