दोस्तों इस सत्य घटना से हम यह जान पाएंगे की हम हमारे माइंड की प्रोग्रामिंग किस तरह करते हैं जो हमें खुद को भी पता नहीं होती, यदि हमने इस लॉजिक को समझ लिए तो हम हर वो कार्य हमारे माइंड से करवा लेंगे जो करवाना चाहते हैं।
भाग एक
बात उस समय की हैं जब मेरा एक कलीग अपनी तबियत ठीक न होने के कारण मुझसे घर जाने की परमिशन लेने आया था,
मेने उसे अपने पास बिठाया और पूछा "क्या हो रहा हैं ?"
उसने बताया की "हाथ पैर दर्द कर रहे हैं , ठीक से बैठ भी नहीं पा रहा हु , और कोई काम भी नहीं कर पा रहा हु, इससे अच्छा हैं की में घर जा कर आराम कर लू,", सच में उसके चेहरे से भी वो थका हुआ लग रहा था, ठीक से चल भी नहीं पा रहा था।
मेने बोला की "मैं किसी को बोलता हु वो घर छोड़ देगा"
बस हमारी बात यहाँ समाप्त हुई और वह बंदा ऑफिस से घर के लिए निकल गया।
जैसा उस बन्दे की माइंड ने प्रोग्रामिंग की थी वैसे ही उसकी बॉडी रिस्पॉन्ड कर रही थी
यानि जैसा उसका माइंड सोच रहा था वैसा वो होता जा रहा था। हम सुनते भी आ रहे हैं पुराने समय से की "जैसा सोचेंगे वैसे हो जायेंगे"
भाग दो
थोड़ी देर बाद वही बंदा भागते हुए मेरे पास आया और बोला की "मेरे जुते चोरी हो गए हैं जो मेने अभी कुछ दिन पहले ही ऑनलाइन आर्डर किये थे। "
मेने पूछा "महंगे थे ?"
उसने कुछ कहा तो नहीं बस इशारा किया की "हा"।
मेने कहाँ की "आस-पास देखलो हो सकता हैं कही और उतार दिए होंगे"
उस बन्दे ने ग्राउंड फ्लोर से ले कर थर्ड फ्लोर तक अपने जूते सर्च किये परन्तु उसे जूते कही नहीं मिले।
आखिर कर हमने बिल्डिंग के कैमरा ओपेरटर को बुलाया और रिकॉर्डिंग चेक की और पता लगा की कोई उन जूतों को कोई लिफ्ट में से निकल कर उठा कर ले गया हैं , लिफ्ट बुल्कुल हमारे जूते स्टैंड के सामने ही हैं ,
हमें पता लग चूका था की अब जूते हमें नहीं मिलना हैं , लेकिन उसके साथ ही हमें एक बढ़िया सिख भी मिली।
जब सभी लॉजिक लगाने के बाद भी जूते नहीं मिले तो वह बंदा वही मेरे पास आ कर बैठा जहाँ पर वह २ घण्टे पहले घर जाने की परमिशन के लिए बैठा था।
अब मेने उससे शरारती भाव से पूछा "घर जाना होगा ना ?"
मेरा ऐसा पूछते ही उसे याद आया की "मेरी तबियत ठीक नहीं थी जो अब ठीक हैं"
और न ही उसे हाथ पैर दर्द कर रहे , क्युकी जूते ढूंढने के चक्कर में उसने ३ मंजिला ईमारत के कितने ही राउंड लगा दिए थे।
हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और उसने मुस्कुराते हुए बोला की "नहीं "
दोस्तों इस घटना से हमें एक बात तो साफ हो गई थी की जैसे हम माइंड को बोलते हैं वह वैसा कार्य बॉडी से कराने लग जाता हैं, जब वह बंदा बोल रहा था की वह ठीक नहीं हैं तो उसका माइंड उसे सही समझ कर बॉडी को सिंगनल दे रहा था की वह ठीक नहीं हैं।
जैसे ही उसे उस स्थान पर जूते नहीं मिले तो माइंड ने शरीर के बारे में न सोच कर जूतों को कैसे सर्च करे पर फोकस किया और उसके लिए जो करना था वो किया, लेकिन दिमाग से यह बात पूरी तरह निकल गई की "मेरी तबियत ठीक नहीं "
बस इस कहानी की माध्यम से में आपको यही बताना चाहता हु की हम अपने माइंड को खुद ही प्रोग्राम कर सकते हैं, हम जैसे उसे बोलेंगे वह वैसा करेगा, इसलिए हमेशा अच्छा बोले , पॉजिटिव थिंकिंग रखे , देखते जाएये आप हर मुसीबत से लड़ लेंगे।
और यदि आपने आपके माइंड को बोल दिया की में यह नहीं कर सकता तो यकीन मानिये आप वह कार्य कभी नहीं कर पाएंगे।
इसलिए कहा जाता हैं की
मन के हारे "हार" हैं और मन के जीते "जित"
दोस्तों जल्द ही फोकस पर अपने नए अनुभव के साथ आपसे मिलेंगे
धन्यवाद्
Comments
Post a Comment