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Showing posts from May, 2020

सामाजिक पहल

जय चित्रांश  हम सभी अपने स्वयं  के विकास के लिए कुछ नया करते रहते हैं, हम जानते हैं की जब स्वयं का विकास होगा तो उससे हमारे परिवार का विकास और परिवार के विकास से समाज का विकास होगा,  समाज का विकास करना हमारा कर्त्तव्य हैं , सबके मन में यह विचार होता ही हैं , किन्तु आर्थिक स्तिथि या अन्य बहुत प्रकार के कार्यो में सलग्न होने के कारण हम अपने समाज पर ध्यान नहीं दे पाते और एक जुट नहीं हो पाते। यहाँ एक जुट से मतलब यह बिलकुल नहीं की हमें कोई नेतागिरी करना हैं, सभी को एक स्थान पर एकत्रित होना हैं, हमें बार बार हो रही समाज की मीटिंग में शामिल होना हैं, या हमें चंदा देना हैं ,   मेरे विचार इस सब धारणाओं से बिलकुल अलग हैं , मेरा मानना हैं की हम समाज का सहयोग घर बैठे कर सकते हैं और उसमे अलग से आपकी कोई धनराशि व्यय नहीं होगी और ना ही समय देना होगा, बस आपको अपने मन में निश्चय करना होगा की में कोई भी वस्तु खरीदू या कोई भी सर्विस की आवश्यकता हो तो सबसे पहले अपने समाज से व्यापार करू. यदि   समाज   में नहीं मिले तो बाजार में कही से भी ले लू।   यदि सिर्फ एक बात का ध्यान हम रख लेंगे तो

कायस्थ हब

कायस्थ हब एक कदम सामाजिक विकास की ओर  एप्प डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करे एप्प की कार्यप्रणाली की समझने के लिए वीडियो देखे

युग, प्रलय और दिव्य वर्ष

हम हमेशा से ही सुनते आ रहे हैं की यह कलयुग चल रहा हैं, और सतयुग में, द्वापर में बहुत अच्छा होता था आदि आदि , आइये आज जानते हैं चारो युगो के बारे में  युग चार प्रकार के होते हैं जो सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग।   1. सतयुग  सनातन की पूर्ण स्तिथि होती हैं।  चारो दिशा में धर्म ही धर्म होता हैं. पिता के सामने पुत्र नहीं मरते। निंदा नहीं होती। भगवान श्री नारायण शुक्ल वर्ण के होते हैं. एक ही वेद की मान्यता होती हैं. जब आत्मतत्व की प्राप्ति कराने वाला धर्म हो तब सतयुग ही समझना चाहिए।  2. त्रेतायुग यज्ञ की प्रवत्ति होती हैं।  धर्म का एक पैर नष्ट हो जाता हैं, यदि अब तीन पाद ही होते हैं।  भगवान श्री नारायण रक्त वर्ण के होते हैं.  लोग अपने धर्म से नहीं डिगते। 3 . द्वापरयुग  वेद के चार भाग हो जाते हैं. धर्म के केवल दो पाद ही रहते हैं. भगवान श्री नारायण पित वर्ण के होते हैं.  अधर्म के कारण प्रजा क्षीण होने लगती हैं.  4. कलयुग भगवान श्री नारायण श्याम वर्ण के होते हैं.  धर्म का केवल एक पाद रहता है.  ब्रह्मा जी के एक दिन का गणित ( 1000  चतुर्युगी)   सतयुग (4800)            4000 दिव्य वर्षो का स

33 कोटि मुख्य देवता

33 कोटि मुख्य देवता  हम सभी सुनते आ रहे हैं की हमारे हिन्दू धर्म में ३३ करोड़ देवता हैं , लेकिन हमारे मुख्य देवता ३३ कोटि हैं , कोटि का अर्थ यहाँ प्रकार से हैं , यह सभी वेदोवत देवता भी कहलाते हैं, यह एक हजार युग के अनन्तर पुनः पुनः अपनी इच्छा अनुसार जन्म लेते रहते हैं।  12 आदित्य [अदिति के पुत्र (अदिति दक्ष प्रजापति की पुत्री हैं )]           धाता            मित्र            अर्थमा            शक्र            वरुण            अंश            भग            विवस्वान            पूषा            सविता            त्वष्टा            विष्णु  11  रूद्र (स्थाणु के पुत्र ) [स्थाणु ब्रह्मा जी के मानस पुत्रो में से एक हैं ]           मृग व्याध            सर्प            निष्ठति            अजैकपाद            अक्षिबुह्नथ            पिनाकी            दहन            ईश्वर            कपाली            स्थाणु  (पिता का भी यही नाम था )           भव  8  वसु           धर            ध्रुव            सोम            अह (सवित्र)           अनल            अनिल            प्रत्यक्षु            प्रभास  यहाँ तक 31 हुए अब