जय चित्रांश हम सभी अपने स्वयं के विकास के लिए कुछ नया करते रहते हैं, हम जानते हैं की जब स्वयं का विकास होगा तो उससे हमारे परिवार का विकास और परिवार के विकास से समाज का विकास होगा, समाज का विकास करना हमारा कर्त्तव्य हैं , सबके मन में यह विचार होता ही हैं , किन्तु आर्थिक स्तिथि या अन्य बहुत प्रकार के कार्यो में सलग्न होने के कारण हम अपने समाज पर ध्यान नहीं दे पाते और एक जुट नहीं हो पाते। यहाँ एक जुट से मतलब यह बिलकुल नहीं की हमें कोई नेतागिरी करना हैं, सभी को एक स्थान पर एकत्रित होना हैं, हमें बार बार हो रही समाज की मीटिंग में शामिल होना हैं, या हमें चंदा देना हैं , मेरे विचार इस सब धारणाओं से बिलकुल अलग हैं , मेरा मानना हैं की हम समाज का सहयोग घर बैठे कर सकते हैं और उसमे अलग से आपकी कोई धनराशि व्यय नहीं होगी और ना ही समय देना होगा, बस आपको अपने मन में निश्चय करना होगा की में कोई भी वस्तु खरीदू या कोई भी सर्विस की आवश्यकता हो तो सबसे पहले अपने समाज से व्यापार करू. यदि समाज में नहीं मिले तो बाजार में कही से भी ले लू। ...